रोली मौली किसे कहते है, Roli Moli Kise Kahate Hain: क्या आपको पता है कि रोली मौली किसे कहते हैं | क्योंकि आज के समय में बहुत सारे नौजवान रोली मौली के बारे में कोई भी जानकारी नहीं रखते हैं|
यदि आप यह जानना चाहते हैं कि रोली मौली किसे कहते हैं तो आपकी यह लेख बहुत मदद करने वाला है क्योंकि इस लेख में हमने विस्तार से यह बताया है की रोली मौली किसे कहते हैं|
अधिकतर लोग यह जरुर जानते हैं की रोली और मौली दोनों अलग-अलग सामग्री होती हैं | लेकिन क्या आपको पता है कि यह दोनों सामग्री किस लिए इस्तेमाल की जाती है |
इन्हें इस्तेमाल करने का क्या कारण है यदि आपको यह जानकारी नहीं है तो आप यहां विस्तार से जानने वाले हैं|
रोली किसे कहते हैं? | Roli Kise Kahate Hain
सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही जब कोई मेहमान घर पर आता है उसके सिर पर तिलक लगाया जाता है | तिलक करने हेतु जिस सामग्री का उपयोग किया जाता है उसे रोली कहा जाता है|
भारत में आम भाषा में रोली को कुमकुम भी कहते हैं | कुमकुम और रोली दोनों एक ही सामग्री है लेकिन आपको यह पता होना चाहिए की सिंदूर और रोली दोनों अलग-अलग सामग्री होती है|

हर व्यक्ति सिंदूर तथा रोली को रंग के अनुसार आसानी के साथ पहचान सकता है | अधिकतर घरों में रोली का इस्तेमाल पूजा के लिए या फिर माथे पर तिलक लगाने के लिए किया जाता है | वही सिंदूर का इस्तेमाल अक्सर महिलाएं अपने सुहाग के लिए करती हैं|
रोली बनाने की विधि क्या है?
रोली बनाना बहुत ही आसान होता है यदि आप रोली बनाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हल्दी एवं चूने का मिश्रण करना होगा तब जाकर रोली बनती है|
रोली बनाने के लिए आपको कुछ हल्दी की गांठ पानी में डालकर रख देनी है | अब आपको हल्दी इस पानी से निकल लेनी है और चूने के क्षार के कारण यह हल्दी की गांठ पूरी तरह लाल हो जाती हैं|
अब आपने सही प्रकार से पीस कर रोली बना सकते हैं | अब आपको 50 ग्राम बारीक पिसी हुई हल्दी तथा दो चम्मच खाने का सौदा एक कटोरी में सही प्रकार से मिलकर उसे पतला पेस्ट बना ले ताकि यह पेस्ट लाल रंग का हो जाए|
कुछ समय के बाद जैसे ही यह पेस्ट सूख जाता है यह आपको रोली के रूप में नजर आएगा और इसे आप पूजा तथा किसी महिमन के सर पर तिलक के रूप में लगा सकते हैं|
मौली किसे कहते हैं? | Moli Kise Kahate Hain
मौली वह धागा होता है जिसे कलाई पर बांधा जाता है | प्राचीन काल से ही सनातन धर्म में मौली का उपयोग किया जा रहा है | आम भाषा में भारत में बहुत सारे लोग मौली को कलावा भी कहते हैं|
सनातन धर्म में माना जाता है कि जब कोई भी व्यक्ति का कलावा को अपने हाथ में बांधता है उसे व्यक्ति से देवी देवता प्रसन्न हो जाते हैं | मौली का शाब्दिक अर्थ “सबसे ऊपर” होता है|

मौली को जब इंसानों के द्वारा कलाई में बांधा जाता है यही कारण है कि इस अधिकतर लोग का कलावा भी कहते हैं |
लेकिन इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है | भगवान शंकर के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसलिए इसे कुछ लोग चंद्रमौली भी कहते हैं|
मौली बांधने का मंत्र क्या है?
जब कभी आप अपने हाथ में मौली बढ़ रहे हैं तो आपको इस बात का जरूर ध्यान रखना है कि आपको मंत्र जपते हुए अपने हाथ में मौली बांधनी है|
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वामनुबध्नामी रक्षे मा चल मा चल |
मौली बांधना कहां से शुरू हुआ था?
जब देवी लक्ष्मी ने अपने पति के रक्षा के लिए राजा बलि के हाथों पर मौली बांधी थी तभी से यह प्रथा चली आ रही है|
शास्त्र के अनुसार मौली क्यों बांधनी चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति अपने हाथों में मौली बांधकर रखता है उसे व्यक्ति पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और तीन देवियों लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा रहती है|
मौली बांधने का नियम क्या है?
- पुरुष तथा अविवाहित महिलाओं को सदैव दाएं हाथ में ही मौली बांधने चाहिए|
- विवाहित महिलाओं के लिए बाएं हाथ में मौली बांधने का नियम होता है|
- मौली बांधते समय आपकी मुट्ठी बंद रहनी चाहिए और आपके सिर पर दूसरा हाथ रहना चाहिए|
- आप मौली को कहीं भी बंद है लेकिन एक बात आपको सदैव ध्यान रखनी चाहिए कि आपको सूत्र केवल तीन बार ही लपेटना चाहिए|
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मौली धागा हाथ में क्यों बांधना चाहिए?
जो व्यक्ति इसे अपने हाथ में बांधकर रखता है उसे व्यक्ति पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और तीन देवियों लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा रहती है|
कुमकुम तथा रोली में क्या अंतर होता है?
कुमकुम तथा रोली में कोई भी अंतर नहीं होता है यह दोनों एक ही सामग्री है|
रोली का उपयोग किस प्रकार किया जाता है?
रोली का उपयोग सनातन धर्म में सर पर तिलक लगाने के लिए उपयोग किया जाता है|